नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में क्रेडिट कार्ड बकाया राशि पर देरी से भुगतान के लिए बैंकों द्वारा लगाए जाने वाले ब्याज दर की 30 प्रतिशत सीमा को हटा दिया। इस फैसले से लाखों क्रेडिट कार्ड उपयोगकर्ताओं को असुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने यह फैसला 2008 में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रेड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ बैंकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए लिया।
क्या है मामला?
2008 में, एनसीडीआरसी ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज दर को 30 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था। एनसीडीआरसी ने पाया था कि कुछ वित्तीय संस्थान 49 प्रतिशत तक की ऊंची ब्याज दरें वसूल रहे थे, जिससे उपभोक्ताओं को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा था।
एनसीडीआरसी ने केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) को फटकार लगाई थी कि उन्होंने इन बैंकों और एनबीएफसी पर कोई सख्ती नहीं की। आयोग ने कहा था, “एक कल्याणकारी राज्य में, वित्तीय संस्थानों को उपभोक्ताओं की वित्तीय कमजोरी का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि इस तरह की ब्याज दरें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उद्देश्यों के खिलाफ हैं और इसे “अनुचित व्यापार व्यवहार” माना जाएगा।
बैंकों की याचिकाएं
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस और एचएसबीसी सहित कई बैंकों ने एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। इन बैंकों ने तर्क दिया कि ब्याज दरों पर सीमाएं लगाने से उनकी वित्तीय संचालन क्षमता पर असर पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के 2008 के फैसले को पलटते हुए कहा कि बैंकों को ब्याज दर तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हालांकि, आधिकारिक फैसला देर रात तक सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया था।
उपभोक्ताओं पर असर
इस फैसले से उपभोक्ताओं को अतिरिक्त वित्तीय बोझ झेलना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऊंची ब्याज दरों के चलते उन उपभोक्ताओं को सबसे अधिक नुकसान होगा जो समय पर अपने क्रेडिट कार्ड बिल का भुगतान नहीं कर पाते।
सरकार और आरबीआई की भूमिका
एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि केंद्र सरकार और आरबीआई को बैंकों और एनबीएफसी पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। आयोग ने सुझाव दिया था कि उपभोक्ताओं को अनावश्यक शोषण से बचाने के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू किए जाने चाहिए।
समस्या का समाधान
विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे को हल करने के लिए केंद्र और आरबीआई को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, ताकि उपभोक्ताओं के अधिकार सुरक्षित रहें और वित्तीय संस्थानों की कार्यक्षमता भी बनी रहे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय वित्तीय बाजार और उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और आरबीआई इस मामले में आगे क्या कदम उठाते हैं।
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